ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

"अनन्त नामक -कालसर्पयोग"के स्वाभाव एवं प्रभाव ?"

-----जब लग्न में राहु तथा सप्तम भाव में केतु हो एवं उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ---तो "अनन्त नामक "कालसर्पयोग बनता है ।इस अनन्त नामक "कालसर्पयोग "में जन्म लेने वाले जातक स्वजनों से बारम्बार धोखा खाते हैं ।दिमाग से कम दिल से ज्यादा काम लेते हैं ।जन्म के साथ ही कई तरह के संघर्ष का दौर शुरू हो जाता है ,मध्य जीवन काल तक परेशानियाँ चलती रहती हैं ।जीवन की आजादी सिमित रहती है ।मुख एवं मस्तिष्क में बीमारी पैदा होने का भय होता है ।इस योग वाले जातक किसी महिला -पुरुष के एवं पुरुष महिला के सहयोग से ऊपर उठते हैं और किसी अन्य महिला या पुरुष की संगती से नीचे भी गिरते हैं ।।
नोट ---ज्योतिष हमें भविष्य की घटनाओं को दर्शाती है ----कर्म का प्रतिफल ही ज्योतिष दर्शाती है ---तो क्यों न हम --आने वाली घटनाओं से प्रेरणा लें -----अपने भविष्य को कर्म के द्वारा सुखमय स्वयं बनाएं ।।
--------------------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }

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