ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

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गुरुवार, 30 अगस्त 2012

"वासुकी "नामक -कालसर्पयोग -के स्वभाव और प्रभाव ?"

------"वासुकी "नामक कालसर्पयोग तब बनता है --जब जन्म कुंडली के तृतीय भाव में "राहु "और नवम भाव में "केतु "हो एवं उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ।--"वासुकी "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक कठोर परिश्रमी ,अनुशासन प्रेमी ,दूसरों की दुखद स्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले ,अपने मन का दुःख किसी से न कहने वाले ,सत्य प्रिय व्यक्ति होते हैं ।इनका पारिवारिक जीवन अभिशापित {शापित }या सुषुप्त {शान्त } सा बना रहता है ।घर वालों का सहयोग नहीं मिलता है ।बाहरी लोगों के सहयोग से बड़े कार्य कर डालते हैं ।ऐसे जातक को सम्मान और धन दोनों की प्राप्ति होती है ,किन्तु भाग्य अक्सर विपरीत होता है ।।
--------------नोट ----जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति यदि बहुत उत्तम नहीं भी हो ----किन्तु --हजारों योगों में से एक भी यदि सुन्दर योग हो --तो जातक उस योग के प्रभाव से --राजा भी बन जाता है ----जैसे -पूर्व मुख्यमंत्री -सुश्री मायाबतीजी की कुंडली में ----यह योग ही है जो उन्हें --पांच बार शासनाधीश बनायेगा ?"
------------------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "
    ज्योतिष सेवा सदन -मेरठ -उत्तर प्रदेश }
            संपर्क सूत्र -09897701636------!!

बुधवार, 29 अगस्त 2012

"कुलिक नामक "कालसर्पयोग "के स्वभाव एवं प्रभाव ?"

-----जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में "राहु एवं अष्टम भाव में केतु हो "---उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ।"कुलिक -नामक "कालसर्पयोग "में जन्म लेने वाले जातक -धन -कुटुम्ब -वाणी एवं स्वास्थ की समस्याओं से परेशान रहते हैं ।इनके स्वरुप एवं विकास के साधनों पर दुष्टजनों की बारम्बार बुरी नजर लगती है ।वहीं कुदृष्टि विकास मार्ग को अवरुद्ध कर देती है ।ऐसे लोग कठिनाइयों में भी हँसते हैं ,हँसाते हैं ,समस्याओं में भी जीते हैं ,जिलाते हैं । इनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन इनका मित्र है एवं कौन शत्रु ।--अपने पराक्रम एवं बुद्धिमानी से वे अच्छी तरक्की कर लेते हैं ।।
--------------यूँ तो ---कालसर्पयोग कई प्रकार के होते हैं -------इसका निदान भी "कर्मकांड "में अन्नत प्रकार से करते हैं ।-----जरुरी नहीं कि --सभी "कालसर्पयोग "अहितकारी होते हैं --जरुरी आकलन का भी होता है ।-----आईये हमलोग अपनी -अपनी कुंडली का स्वयं आकलन करें ----तभी सभीका  एक मत होगा ?"
-----------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "
ज्योतिष सेवा सदन देहली गेट {मेरठ -उत्तर प्रदेश }

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

"अनन्त नामक -कालसर्पयोग"के स्वाभाव एवं प्रभाव ?"

-----जब लग्न में राहु तथा सप्तम भाव में केतु हो एवं उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ---तो "अनन्त नामक "कालसर्पयोग बनता है ।इस अनन्त नामक "कालसर्पयोग "में जन्म लेने वाले जातक स्वजनों से बारम्बार धोखा खाते हैं ।दिमाग से कम दिल से ज्यादा काम लेते हैं ।जन्म के साथ ही कई तरह के संघर्ष का दौर शुरू हो जाता है ,मध्य जीवन काल तक परेशानियाँ चलती रहती हैं ।जीवन की आजादी सिमित रहती है ।मुख एवं मस्तिष्क में बीमारी पैदा होने का भय होता है ।इस योग वाले जातक किसी महिला -पुरुष के एवं पुरुष महिला के सहयोग से ऊपर उठते हैं और किसी अन्य महिला या पुरुष की संगती से नीचे भी गिरते हैं ।।
नोट ---ज्योतिष हमें भविष्य की घटनाओं को दर्शाती है ----कर्म का प्रतिफल ही ज्योतिष दर्शाती है ---तो क्यों न हम --आने वाली घटनाओं से प्रेरणा लें -----अपने भविष्य को कर्म के द्वारा सुखमय स्वयं बनाएं ।।
--------------------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }