------"वासुकी "नामक कालसर्पयोग तब बनता है --जब जन्म कुंडली के तृतीय भाव में "राहु "और नवम भाव में "केतु "हो एवं उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ।--"वासुकी "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले जातक कठोर परिश्रमी ,अनुशासन प्रेमी ,दूसरों की दुखद स्थिति में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले ,अपने मन का दुःख किसी से न कहने वाले ,सत्य प्रिय व्यक्ति होते हैं ।इनका पारिवारिक जीवन अभिशापित {शापित }या सुषुप्त {शान्त } सा बना रहता है ।घर वालों का सहयोग नहीं मिलता है ।बाहरी लोगों के सहयोग से बड़े कार्य कर डालते हैं ।ऐसे जातक को सम्मान और धन दोनों की प्राप्ति होती है ,किन्तु भाग्य अक्सर विपरीत होता है ।।
--------------नोट ----जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति यदि बहुत उत्तम नहीं भी हो ----किन्तु --हजारों योगों में से एक भी यदि सुन्दर योग हो --तो जातक उस योग के प्रभाव से --राजा भी बन जाता है ----जैसे -पूर्व मुख्यमंत्री -सुश्री मायाबतीजी की कुंडली में ----यह योग ही है जो उन्हें --पांच बार शासनाधीश बनायेगा ?"
------------------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "
ज्योतिष सेवा सदन -मेरठ -उत्तर प्रदेश }
संपर्क सूत्र -09897701636------!!
--------------नोट ----जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति यदि बहुत उत्तम नहीं भी हो ----किन्तु --हजारों योगों में से एक भी यदि सुन्दर योग हो --तो जातक उस योग के प्रभाव से --राजा भी बन जाता है ----जैसे -पूर्व मुख्यमंत्री -सुश्री मायाबतीजी की कुंडली में ----यह योग ही है जो उन्हें --पांच बार शासनाधीश बनायेगा ?"
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