-----जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में "राहु एवं अष्टम भाव में केतु हो "---उन दोनों के बीच सूर्यादि सातों ग्रह स्थित हों ।"कुलिक -नामक "कालसर्पयोग "में जन्म लेने वाले जातक -धन -कुटुम्ब -वाणी एवं स्वास्थ की समस्याओं से परेशान रहते हैं ।इनके स्वरुप एवं विकास के साधनों पर दुष्टजनों की बारम्बार बुरी नजर लगती है ।वहीं कुदृष्टि विकास मार्ग को अवरुद्ध कर देती है ।ऐसे लोग कठिनाइयों में भी हँसते हैं ,हँसाते हैं ,समस्याओं में भी जीते हैं ,जिलाते हैं । इनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन इनका मित्र है एवं कौन शत्रु ।--अपने पराक्रम एवं बुद्धिमानी से वे अच्छी तरक्की कर लेते हैं ।।
--------------यूँ तो ---कालसर्पयोग कई प्रकार के होते हैं -------इसका निदान भी "कर्मकांड "में अन्नत प्रकार से करते हैं ।-----जरुरी नहीं कि --सभी "कालसर्पयोग "अहितकारी होते हैं --जरुरी आकलन का भी होता है ।-----आईये हमलोग अपनी -अपनी कुंडली का स्वयं आकलन करें ----तभी सभीका एक मत होगा ?"
-----------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "
ज्योतिष सेवा सदन देहली गेट {मेरठ -उत्तर प्रदेश }
--------------यूँ तो ---कालसर्पयोग कई प्रकार के होते हैं -------इसका निदान भी "कर्मकांड "में अन्नत प्रकार से करते हैं ।-----जरुरी नहीं कि --सभी "कालसर्पयोग "अहितकारी होते हैं --जरुरी आकलन का भी होता है ।-----आईये हमलोग अपनी -अपनी कुंडली का स्वयं आकलन करें ----तभी सभीका एक मत होगा ?"
-----------प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "
ज्योतिष सेवा सदन देहली गेट {मेरठ -उत्तर प्रदेश }
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