ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

निःशुल्क ज्योतिष सेवा ऑनलाइन रात्रि ८ से९ जीमेल पर [पर्तिदिन ]

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

jyotish seva sdanNivedak "jha shastri"Meerut

Hamari seva se yadi aap mitr bandhun ko koi bhi labh milta hai to ham apni seva ko sarthak samjhengen.online seva ratri 8 se9 -facebook,orkut.ibibi.our Gmail par ek sath Nihshulk evm nihsankoch swikar karen.
bhavdiy Nivedak "jha shastri"
-pdt.kljhashastri@gmail.com
kanhaiyalal71@ibibo.com
9897701636.9358885616.

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ज्योतिष सेवा सदन निवेदक "झा शास्त्री [मेरठ ]

हम आपकी सेवा में रात्रि ८ से९ ऑनलाइन तत्पर रहते हैं |आप हमारी सेवा ऑनलाइन -इबीबो,ऑरकुट.फसबूक.और जीमेल पर एक साथ प्राप्त कर सकते हैं| मेल के द्वारा हम आपकी सेवा ७ दिन में करते  हैं | सेल से आप कभी भी सेवा ले सकते हैं |आपका सही विवरण मिलने पर ही आपकी सेवा कर पाते हैं.|
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ|
सम्पर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.             ज्योतिष सेवा सदन निवेदक "झा शास्त्री [मेरठ ]

ज्योतिष सेवा सदन निवेदक "झा शास्त्री"

आपकी संतुष्टि ही हमारी सेवा है | हम अपने माता पिता एवं गुरुजनों से प्राप्त प्रसाद को आप तक पहुँचाकर कोई हम आपके ऊपर दया नहीं करते हैं ,वल्कि "ज्योतिष एवं कर्मकांड" की महत्ता को बढाकर कृपा के पात्र बनना चाहते हैं |
भवदीय निवेदक ;-के० एल० झा शास्त्री मेरठ |
संपर्क सूत्र =९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.    

"कर्मकांड का निदान ,और हमारा समाधान"


                
  "कर्मकांड का निदान ,और हमारा समाधान"

     सत्यमव्रूयात=सदा सत्य बोलना चाहिए | -प्रियंव्रूयात =सदा प्रिय वचन बोलने चाहिए | न व्रूयात असत्य प्रियं = हम प्रिय तो बोलें किन्तु ,वो असत्य हो ,तो इस प्रकार की भी बात नहीं बोलनी चाहिए |-[राम -राम ]
A small Dot can Stop a Big Sentence.But.Few more Dots can Give a Continuity"Amazing But True. "Every Ending can be a New Begining",Have a great life.-Good Morning.

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

"कालसर्पदोष" का अनुभव और निदान "

                                 "कालसर्पदोष" का अनुभव और निदान "
"ज्योतिष" के दो रूप हैं -गणित एवं फलित | -गणित-अर्थात गणना,फलित अर्थात -फलादेश | आज कोई भी गणना भी कर लेता है और फलित भी कर देता है | वास्तविकता क्या है  = हमें कुंडली का निर्माण और फलादेश के लिये उपाधि प्राप्त करनी पड़ती है ,और उस उपाधि का नाम है -"ज्योतिषाचार्य " यहाँ तक पहुँचने ले लिये हमें ,=प्रथमा,मध्यमा ,उत्तर मध्यमा या उपशास्त्री ,और अंत में "आचर्य" की उपाधि मिलती है| यहाँ तक पहुँचने के लिये हमें कई ग्रंथों के अध्ययन करने पड़ते हैं-जैसे -शिघबोध ,मुहूर्त चिंतामणि ,ताजिक नीलकंठी ,व्रेहतपराशर इत्यादि |
तब हम इस योग्य होते हैं ,कि आपका भविष्य बता सकें | "जन्मकुंडली" में  जब सभी राहू एवं केतु के मध्य सभी ग्रह विराजमान होते हैं ,तो "कलसर्पदोष" कहते हैं यह दोष कई कारणों से बनते हैं | कभी-कभी "पित्रीदोष" के कारण भी बन जाता है ,परन्तु यह योग तो होता है ,किन्तु समाधान भी कई प्रकार से करने पड़ते हैं | इस योग का सबसे बड़ा जो प्रतिफल है वो है ,मन काम के क्षेत्र में भयभीत करना | इस योग से दिक्कत भी होती है ,किन्तु यदि सही समाधान हो तो जरुरी नहीं कि दिक्कत दूर नहीं हो सकती है | यह विशेष दिक्कत तब देते हैं जब -राहू या केतु की महादशा या अनार्दशा चल रही हो | प्रायः -कुंडली में एक राशी में यह ग्रह डेढ़ साल तक निवास करते हैं | आगे हम इनके उपाय का निदान बतायेंगें |
भवदीय -निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री -मेरठ
संपर्कसूत्र =९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.   

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

"jyotish evm karmkand"-k.l.jha shastri-Meerut.: "वास्तु दोष या चमक धमक "

"jyotish evm karmkand"-k.l.jha shastri-Meerut.: "वास्तु दोष या चमक धमक "

"वास्तु दोष या चमक धमक "

                            "वास्तु दोष या चमक धमक "
परिवर्तन तो प्राकृतिक देन है | वो सबका होता रहता है ,किन्तु वास्तविकता ही बदल जाये ,तो कुछ आश्चर्य होता है | आइये अवलोकन करते हैं ,उन ग्रंथों का - कर्मकांड का प्रतिपादन सर्वप्रथम "शांडिल्य "नामक ऋषि ने किया ?भाव था - आने वाले समय में "द्विज" का भरण पोषण किस प्रकार से हो ? जिस भूमि पर हम निवास करते हैं ,वहाँ यदि किसी प्रकार के भवन का निर्माण करते हैं तो "भूमि दोष " लगता है ,अर्थात  परिवार की प्रसन्नता के लिये हमें वास्तु का विचार करने चाहिए ,पर आज आबादी इतनी हो गयी है कि, आप चाहकर भी दोष मुक्त भूमि का चयन नहीं कर सकते हैं ,तो आपको वास्तु का निवारण करना चाहिए | -शास्त्रों का मत है कि "वास्तु" नाम का कोई असुर उत्पन्न हुआ ,वो इतना बलशाली था ,कि किसी भी देबता से पराजित नहीं हुआ ,अंत में "भगवान विष्णु " ने बरदान दिया ,कि किसी भी शुभ कार्ज़ में आपकी भी पूजा होगी ,और यदि भवन का निर्माण होगा तो "प्रधान देबता उस यग्य के आपही होंगें | अतः -वैदिक परम्परा में कोई भी संस्कार धार्मिक हो   तो उसमें  "नाग  की पूजा अवश्य  होती  है | -मकान  के निर्माण में यदि कोई दोष रह  जाता  है, और आज के युग  में  तो दोष ही दोष रहते  हैं , तो इस  पूजा से आप दोष से मुक्त हो जाते  हैं -परन्तु  आज हम भवन  के निर्माण में अत्यधिक रुपयों  का व्यय करते हैं ,पर जिससे  हमारा  कल्याण  होगा, उसके  प्रति विचार न  कर ,हम भव्यता  का अत्यधिक  विचार करते हैं|
भाव -हमें मकान में ये दोष तो देखना ही चाहिए, केवल भव्यता से ही आप प्रसन्न नहीं रहेंगें ,प्रसन्नता  के लिये इन बातों का भी समाधान  करना चाहिए |
भवदीय  -झा  शास्त्री  -मेरठ
-9897701636.9358885616.

"वास्तु दोष या चमक धमक "

                            "वास्तु दोष या चमक धमक "
परिवर्तन तो प्राकृतिक देन है | वो सबका होता रहता है ,किन्तु वास्तविकता ही बदल जाये तो कुछ आश्चर्य होता है , आइये अवलोकन करते हैं ,उन ग्रंथों का - कर्मकांड का प्रतिपादन सर्वप्रथम "शांडिल्य "नामक ऋषि ने किया ?भाव था - आने वाले समय में "द्विज" का भरण पोषण किस प्रकार से हो ? जिस भूमि पर हम निवास करते हैं ,वहाँ यदि किसी प्रकार के भवन का निर्माण करते हैं तो "भूमि दोष " लगता है ,अर्थात  परिवार की प्रसन्नता के लिये हमें वास्तु का विचार करने चाहिए ,पर आज आबादी इतनी हो गयी है कि, आप चाहकर भी दोष मुक्त भूमि का चयन नहीं कर सकते हैं ,तो आपको वास्तु का निवारण करना चाहिए | -शास्त्रों का मत है कि "वास्तु" नाम का कोई असुर उत्पन्न हुआ ,वो इतना बलशाली था ,कि किसी भी देबता से पराजित नहीं हुआ ,अंत में "भगवान विष्णु " ने बरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्ज़ में आपकी भी पूजा होगी ,और यदि भवन का निर्माण होगा तो "प्रधान देबता उस यग्य के आपही होंगें | अतः -वैदिक परम्परा में 

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

भगवान "मनु " और "हम

                                  भगवान "मनु " और "हम "किसी भी  बात को सत्य तब मान लेनी चाहिए ,जब हम पढ़ें एवं अनुभव करें | प्राचीन ग्रंथों में बहुत सी बातें विवादस्पद लगती है ,किन्तु जब हम ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं ,तत्पश्चात जब हम उस बात का आकलन करते हैं, तो हमें भिन्नता सी बात लगती है | आइये अबलोकन करते हैं, वेदांत ,और "मनुश्मृति" का - यह बात तो आप भी मान सकते हैं ,कि किसी भी घर को चलाने के लिये मालिक पद तो एक को ही मिलेगा |  सदस्य जितने होंगें ,उसी अनुपात नौकर भी होंगें .कर्मचारी भी होंगें | सवाल यह है ,कि  जितनी जिम्मेदारी एक नौकर की होती है, उतनी ही कर्मचारियों की भी होती है , यदि सभी सदस्य अपने -अपने कार्ज़ को सही करेंगें तो स्वर्ग हो जायेगा ,और यदि किसी ने तोड़ने की कोशिश की तो वही  घर नरक  में परिवर्तन  हो जायेगा | मेरे विचार  से  पद बड़ा नहीं होता है "पद की गरिमा बनी रहे ये बड़ी बात होती है .मानव बड़ा नहीं होता है ,मानवता बड़ी होती है.|
 हमारा मानव शरीर है -सभी मानव के शरीर में मुंह होता है ,और मुंह को ब्राह्मन कहते हैं ,क्योंकि वेद का स्थान मुंह ही है | भुजाओं को क्षत्रिय कहा गया है .और सभी मानव के शरीर में भुजाएं होती हैं.| उदर को वैश्य कहा गया है ,और सभी मानव के शरीर में उदर होता है | टाँगें शुद्र होती है .और ये टाँगें सभी मानव शरीर में होती हैं | जब हमारे शरीर में ही ,ब्राह्मन क्षत्रिय ,वैश्य और शुद्र विराजमान हैं ,तो  मत भिन्नता क्यों हैं - अब  यदि समाज को चलाना हो ,देश को चलाना हो , तो  प्रधान मंत्री तो कोई एक ही होगा?  यदि सभी प्रधान ही हो जायेंगें, तो उप प्रधान कोन होगा | अपने शरीर का मुंह सबसे पवित्र होता है ,तो वेद कोन पढ़ेगा जो पवित्र होगा ,यदि हमारे हाथ न हों तो अपने शरीर की रक्षा कोन करेगा  तो जो बलसाली होगा ,वही क्षत्री होगा | जो सबका भरन पोषण करेगा वही वैश्य होगा | और जो सबकी सेवा करेगा वही शुद्र  होगा ,परन्तु जिस प्रकार हमारे शरीर के सभी अंग जुड़े होते हैं, उसी प्रकार देश के सभी सदस्य ,या घर के सभी सदय एक दसरे के  पूरक होते हैं ,यदि अपने -अपने कर्तव्य का सही पालन करेंगें, तो देश या घर होगा और तोड़ देंगें तो बिखर जायेगा | भाव -हम सभी एक दसरे के पूरक हैं ,यह सोचकर अपने -अपने कार्ज़ का संपादन करना चाहिए ,इससे हम और हमारा देश समाज सभी जुड़े रहेंगें ,अन्यथा टूटना तो आसन है ही |भवदीय -झा शास्त्री [मेरठ ]
सम्पर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६. 

भगवान "मनु " और "हम "

                                   भगवान "मनु " और "हम "
किसी भी  बात को सत्य तब मान लेनी चाहिए ,जब हम पढ़ें एवं अनुभव करें | प्राचीन ग्रंथों में बहुत सी बातें विवादस्पद लगती है ,किन्तु जब हम ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं ,तत्पश्चात जब हम उस बात का आकलन करते हैं तो हमें भिन्नता सी बात लगती है | आइये अबलोकन करते हैं वेदांत ,और "मनुश्मृति" का - यह बात तो आप भी मान सकते हैं कि किसी भी घर को चलाने के लिये मालिक पद तो एक को ही मिलेगा |  सदस्य जितने होंगें ,उसी अनुपात नौकर भी होंगें .कर्मचारी भी होंगें | सवाल यह है ,की  जितनी जिम्मेदारी एक नौकर की होती है, उतनी ही कर्मचारियों की भी होती है , यदि सभी सदस्य अपने -अपने कार्ज़ को सही करेंगें तो स्वर्ग हो जायेगा

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

"कुंडली का पंचम भाव "

                                                      "कुंडली का पंचम भाव "
हम जब "कुंडली "का निरिक्षण करतेहैं ,तो सर्वप्रथम  त्रिकोण का निरिक्षण करते हैं ,प्रथम ,पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं  ज्योतिष शास्त्र में ,ये भाव  सदा ही उत्तम फल प्रदान करते हैं | हाँ ?ये जरुर है, कि पापी ग्रहों से यक्त होकर हमारे स्वभाव को भी  ये पाप की ओर  अग्रसित करते हैं ,और देविक ग्रहों से युक्त होकर हमें ,धर्म के मार्ग पर ले चलते हैं ,किन्तु प्रभाव और फल पूर्ण प्रदान करते हैं | "कुंडली "में हमें  पंचम भाव से -शिक्षा ,संतान ,बुद्धि ,और विकास की हमें जानकारी मिलती है | इस भाव में -सूर्य ,चंद्र .गुरु .यदि विधमान हों तो हमें -राजनीति ,व्यापर ,या  सेनिक विभाग के प्रति  रूचि विशेष होती है और हमें या अपनी संतानों को इस मार्ग चलने की प्रेरणा देनी चाहिए |
[२]-मंगल ,शनि .के होने पर -विशेष वस्तु की खोज ,तकनीकी विशेषग्य  एवं लोह और भूमि के व्यापर की तरफ परयास करने चाहिए |
[३]-शुक्र ,बुद्ध ,के होने पर -संगीत ,राजनीति .कला.एवं किसी विशेष वस्तु  के प्रति प्रयास करने चाहिए |

[४]-राहू एवं केतु के होने पर -किसी भी कार्ज़ को कर तो सकते हैं ,किन्तु  ये ग्रह उतार और चढाव बहुत ही दिखाते हैं ,सो विचार कर कोई कार्ज़ अवश्य करें, |
नोट :- हमारे बहुत से मित्र बंधू  इस बात को लेकर चिंतित हो जाते हैं ,या फिर "ज्योतिष" को नहीं मानते हैं ,कि उन्हें सही  समय एवं  तारीख अपनी नहीं ज्ञात होती है ,परन्तु हमारा मानना यह है , कि यदि आपके पास अपनी सही जानकारी समय एवं तारीख की नहीं है ,तो आप चिंतित न हों ?उसके लिये आप अपनी साधना से  अपने भविष्य को सही कर सकते हैं |
भवदीय -निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
संपर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.