"कुंडली का पंचम भाव "
हम जब "कुंडली "का निरिक्षण करतेहैं ,तो सर्वप्रथम त्रिकोण का निरिक्षण करते हैं ,प्रथम ,पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं ज्योतिष शास्त्र में ,ये भाव सदा ही उत्तम फल प्रदान करते हैं | हाँ ?ये जरुर है, कि पापी ग्रहों से यक्त होकर हमारे स्वभाव को भी ये पाप की ओर अग्रसित करते हैं ,और देविक ग्रहों से युक्त होकर हमें ,धर्म के मार्ग पर ले चलते हैं ,किन्तु प्रभाव और फल पूर्ण प्रदान करते हैं | "कुंडली "में हमें पंचम भाव से -शिक्षा ,संतान ,बुद्धि ,और विकास की हमें जानकारी मिलती है | इस भाव में -सूर्य ,चंद्र .गुरु .यदि विधमान हों तो हमें -राजनीति ,व्यापर ,या सेनिक विभाग के प्रति रूचि विशेष होती है और हमें या अपनी संतानों को इस मार्ग चलने की प्रेरणा देनी चाहिए |
[२]-मंगल ,शनि .के होने पर -विशेष वस्तु की खोज ,तकनीकी विशेषग्य एवं लोह और भूमि के व्यापर की तरफ परयास करने चाहिए |
[३]-शुक्र ,बुद्ध ,के होने पर -संगीत ,राजनीति .कला.एवं किसी विशेष वस्तु के प्रति प्रयास करने चाहिए |
[४]-राहू एवं केतु के होने पर -किसी भी कार्ज़ को कर तो सकते हैं ,किन्तु ये ग्रह उतार और चढाव बहुत ही दिखाते हैं ,सो विचार कर कोई कार्ज़ अवश्य करें, |
नोट :- हमारे बहुत से मित्र बंधू इस बात को लेकर चिंतित हो जाते हैं ,या फिर "ज्योतिष" को नहीं मानते हैं ,कि उन्हें सही समय एवं तारीख अपनी नहीं ज्ञात होती है ,परन्तु हमारा मानना यह है , कि यदि आपके पास अपनी सही जानकारी समय एवं तारीख की नहीं है ,तो आप चिंतित न हों ?उसके लिये आप अपनी साधना से अपने भविष्य को सही कर सकते हैं |
भवदीय -निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
संपर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.

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ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
"कुंडली का पंचम भाव "
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"कुंडली का पंचम भाव "
हम जब "कुंडली "का निरिक्षण करतेहैं ,तो सर्वप्रथम त्रिकोण का निरिक्षण करते हैं ,प्रथम ,पंचम और नवम भाव को त्रिकोण कहते हैं ज्योतिष शास्त्र में ,ये भाव सदा ही उत्तम फल प्रदान करते हैं | हाँ ?ये जरुर है, कि पापी ग्रहों से यक्त होकर हमारे स्वभाव को भी ये पाप की ओर अग्रसित करते हैं ,और देविक ग्रहों से युक्त होकर हमें ,धर्म के मार्ग पर ले चलते हैं ,किन्तु प्रभाव और फल पूर्ण प्रदान करते हैं | "कुंडली "में हमें पंचम भाव से -शिक्षा ,संतान ,बुद्धि ,और विकास की हमें जानकारी मिलती है | इस भाव में -सूर्य ,चंद्र .गुरु .यदि विधमान हों तो हमें -राजनीति ,व्यापर ,या सेनिक विभाग के प्रति रूचि विशेष होती है और हमें या अपनी संतानों को इस मार्ग चलने की प्रेरणा देनी चाहिए |
[२]-मंगल ,शनि .के होने पर -विशेष वस्तु की खोज ,तकनीकी विशेषग्य एवं लोह और भूमि के व्यापर की तरफ परयास करने चाहिए |
[३]-शुक्र ,बुद्ध ,के होने पर -संगीत ,राजनीति .कला.एवं किसी विशेष वस्तु के प्रति प्रयास करने चाहिए |
[४]-राहू एवं केतु के होने पर -किसी भी कार्ज़ को कर तो सकते हैं ,किन्तु ये ग्रह उतर और चढाव बहुत ही दिखाते हैं ,सो विचार कर कोई कार्ज़ अवश्य करें, |
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