---ज्योतिष शास्त्र में योगों का बहुत महत्त्व बताया गया है।---एक कहावत है कि "मंदिर में भोग "अस्पताल में रोग "--और ज्योतिष में "योग "का अपना एक अलग महत्त्व है ।
-------जिस प्रकार से विभिन्न चीजों को आपस में एक विशेष अनुपात में मिलाने से सुस्वाद व्यंजन -आदि {भोजनादि } तैयार होते हैं ,ठीक उसी प्रकार दो या अधिक ग्रहों के संयोग से विशेष योग भी बनता है ,जिसका विशेष महत्त्व जातक के जीवन में पड़ता है ।
---------हम निरंतर उन योगों को लिखने का प्रयास करते रहते हैं ।कभी सात ग्रहों की ही गणना होती थी ।फिर नवग्रहों की गणना होने लगी ।आजकल -द्वादश {12} ग्रहों की गणना की जाती है ---आप सभी जानते हैं ,किन्तु ---ग्रहों की स्थिति भले ही निर्बल हो ,परन्तु सबल योग के कारण हमारे जीवन में कभी -कभी -विशेष संयोग बन जाता है -----ये योग के कारण ही होता है ।।
------आशा है -जो "कालसर्पयोग "को नहीं मानते हैं ------? उपरोक्त ज्योतिष ग्रंथों में हजारों प्रकार के योगों की परिचर्चा की गई है ----जो मंदिर में होते हैं -वो भले ही "भोग "का महत्त्व न दें किन्तु परोसी देते हैं या भक्त "भोग "पाने के लिए लालायित रहते हैं ।{2}-जो अस्पताल का निरंतर चक्कर लगाते रहते हैं -दुःख केवल वही समझ सकते हैं --चिकित्सक भले ही न समझें ।-{3}-जिनको ज्योतिष एवं ज्योतिषियों के प्रति आस्था होती है ----भविष्य में होने वाला "संयोग "को केवल वही मान सकते हैं ।।
------भवदीय -पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "---कार्यालय -कृष्णपुरी धर्मशाला {मेरठ -उत्तर प्रदेश}
ज्योतिष सदस्यों हेतु संपर्क सूत्र -9897701636--9358885616---!!
-------जिस प्रकार से विभिन्न चीजों को आपस में एक विशेष अनुपात में मिलाने से सुस्वाद व्यंजन -आदि {भोजनादि } तैयार होते हैं ,ठीक उसी प्रकार दो या अधिक ग्रहों के संयोग से विशेष योग भी बनता है ,जिसका विशेष महत्त्व जातक के जीवन में पड़ता है ।
---------हम निरंतर उन योगों को लिखने का प्रयास करते रहते हैं ।कभी सात ग्रहों की ही गणना होती थी ।फिर नवग्रहों की गणना होने लगी ।आजकल -द्वादश {12} ग्रहों की गणना की जाती है ---आप सभी जानते हैं ,किन्तु ---ग्रहों की स्थिति भले ही निर्बल हो ,परन्तु सबल योग के कारण हमारे जीवन में कभी -कभी -विशेष संयोग बन जाता है -----ये योग के कारण ही होता है ।।
------आशा है -जो "कालसर्पयोग "को नहीं मानते हैं ------? उपरोक्त ज्योतिष ग्रंथों में हजारों प्रकार के योगों की परिचर्चा की गई है ----जो मंदिर में होते हैं -वो भले ही "भोग "का महत्त्व न दें किन्तु परोसी देते हैं या भक्त "भोग "पाने के लिए लालायित रहते हैं ।{2}-जो अस्पताल का निरंतर चक्कर लगाते रहते हैं -दुःख केवल वही समझ सकते हैं --चिकित्सक भले ही न समझें ।-{3}-जिनको ज्योतिष एवं ज्योतिषियों के प्रति आस्था होती है ----भविष्य में होने वाला "संयोग "को केवल वही मान सकते हैं ।।
------भवदीय -पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "---कार्यालय -कृष्णपुरी धर्मशाला {मेरठ -उत्तर प्रदेश}
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