"यथा राजा तथा प्रजा "[राजा के अनुसार ही प्रजा होती है ] "राजा दिलीप सिंह " सयोग से कम पढ़े लिखे थे ,तो उनके पुरोहित भला अत्यधिक पढ़े क्यों होते ? परन्तु "राजा " के मन बिचार आया की ,क्यों न हम कुछ दान पुन्य करें ,परन्तु यह बत "राजा "को पत्ता थी, कि हमारे पंडितजी भी कम पढ़े लिखें हैं ,तो हम दान किसी योग्य ब्राह्मण को ही देंगें | दान देने की परिचर्चा की "भूदेव" से | भूदेव ने सोचा कि हम कुछ सोचते हैं कि यह धन हमें ही मिले ,एक तो हमने जीवन भर चाकरी की है ,इस राजा की और जब दान की बात आई है तो किसी विद्वान को देगा -द्विज ने कहा कि हे राजन ! आपतो किसी विद्वान को दान देना चाहते हो, किन्तु आप भी तो अनभिग्य हो,"राजा" बोला फिर हम क्या करें -आपको हम एक शलोक देते हैं -जो इस प्रकार से आपको समझा दे तो आप उसको विद्वान समझ लेना -"राजा "बोला अच्छी बात है -शलोक का भा समझो -शुक्लांबर्धरमदेवं-चान्दी का सिक्का है -उसका रंग सफेद है | शशि वर्णम चतुर भुजम-चार चोवन्नी बराबर एक रुपया [ये चतुर्भुज हो गए न ]-प्रसन्न वदनं ध्यायेत -जिस किसी को यह चान्दी का सिक्का मिल जायेगा वो प्रसन्न हो जायेगा | सर्व विघ्नोप शान्तये -किसी गरीब को चान्दी का सिक्का मिल जायेगा तो -उसकी उस दिन की बाधा समाप्त हो जाएगी | "राजा " सभी विद्वानों को आमंत्रित किया की जो भी हमारे इस शलोक का सही भाव हमें समझा देगा तो हम उसको आधाराज्य एवं आज्ञा का पालन हम करेंगें | सभी विद्वान आते गए और कारागार में राजा डालता गया सभी ने भगवान विष्णु का भाव समझाए कारण यह शलोक विष्णु का ही है ,यह भूदेव अति प्रसन्न हो रहे थे कि अब दान हमें ही मिलेगा | रत को जब भोजन कर रहे थे तो पत्नी ने पूछा कि आखिर सभी विद्वानों को राजा कारागार में क्यों डाल रहा है, जबकि शलोक भा भाव भी यही है -भूदेव भोले तुम्हारी समझ में नहीं आएगी -उस सभा में एक कम पढ़े लिखे पंडितजी थे उन्होंने कहा -हम तो देखने मात्र आये हैं -जब देख कि शलोक भी सही है भाव भी सही है तो फिर "राजा " अन्दर क्यों डाल देता है -रात्रि में भूदेव के घर के पीछे रुक गए कि आज पत्ता चल जायेगा कि बात क्या है -पत्नी नहीं मानी, बोली आज तो आपको बताना ही पड़ेगा ,कि बात क्या है| भूदेव बोले कि हमने शलोक का भाव ही बदल दिया है -और कोई भी वो भाव नहीं बता सकता है ,पुनः "राजा " धन हमको दे देगा | अगले दिन वो पंडितजी जो सुन रहे थे सभा में पहुंचे ,एवं जबाब दिया -"राजा "प्रसन्न हुआ -राजा ने कहा अब हम आपकी आज्ञा का पालन करेंगें -पंडितजी बोले -सबसे पहले तुम सभी विद्वानों को स सम्मान भेज दो और हमसे -व्याकरण पढों -"राजा " बोला हम तो पढना ही चाहते थे ,व्याकरण पढ़ी -पंडितजी बोले अब अर्थ लगाओ -"राजा " बोला यह तो भगवान विष्णु का शलोक है ,हमने बहु पाप किया प्राश्चित करना चाहिए अपने राज्य का परित्याग किया -अध्यन -अध्यापन के लिये राज्य को छोड़कर चला गया [भाव मित्र बंधुओं -हम किसी भी विद्वानों को या शास्त्रों को तभी समझ पायेंगें जब हम पूर्ण ज्ञान प्राप्त करेंगें ||
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ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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सोमवार, 1 नवंबर 2010
"यथा राजा तथा प्रजा "[राजा के अनुसार ही प्रजा होती है ]
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