अन्न का अपमान न करें ?
अन्नं व्रह्मा रसो विष्णु ,भोगता च जनार्दनः |
एवं ज्ञात्वा महादेवो,अन्न दोषों न लिप्यते ||
मित्रप्रवर- अन्न के विना हम जी नहीं सकते हैं -तो हमें अन्न को प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए -अन्न =व्रह्मा हैं ,उसका जो रस है- वो विष्णु हैं -एवं जो ग्रहण करते हैं -वो जनार्दन हैं -यह भगवान का प्रसाद है यह समझकर जो भोजन करते हैं -उनको अन्न का दोष नहीं लगता है [हमारा ध्येय यह होना चाहिए ,कि कोई भी भूखा न रहे, इसलिए हम उतना ही अन्न ग्रहण करें,जितने से हमारा जीवन चल सकता हो ]-राम -राम -
[If everyone is happy with u..Then surely u have made compromises in your life,If u are happy with everyoun surely u ve ignored many faults of others..-Good Morning-]

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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
अन्न का अपमान न करें ?
प्रस्तुतकर्ता
ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
पर
शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010


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