"कालसर्पयोग की परिभाषा एवं सर्पशाप से युक्त कुण्डलियाँ ?"
----सभी ग्रह यदि राहु -केतु के मध्य में आ जाए तो "कालसर्पयोग "की सृष्टि होती है ।मोटे तौर पर -कालसर्पयोग -दो प्रकार के होते हैं ।एक उदित गोलार्ध और दूसरा अनुदित गोलार्ध ।उदित गोलार्ध को ग्रस्त योग कहते हैं ,तथा अनुदित को मुक्त योग कहते हैं ।लग्न में राहु तथा सप्तम में केतु हो ,सारे ग्रह 4/8/9/10/11/12 वें स्थानों में हो तो यह उदित "कालसर्पयोग "कहलाता है ।राहु -केतु का भ्रमण सदा उलटा चलता है ।इस योग में सभी ग्रह क्रमशः राहु के मुख में आते चले जाते हैं ।
---------सर्पशाप से ग्रसित कुण्डलियाँ --को भी जानते की कोशिश करते हैं ------?
---प्रसंगवश "कालसर्पयोग "की भांति ही सर्पशाप से ग्रसित कुण्डलियों का विवेचन करना आवश्यक समझता हूँ ।वैसे तो -14 प्रकार से श्रापित कुण्डलियों की शान्ति "कालसर्पयोग "विधि से ही हो जाती है ।केवल संकल्प के समय उच्चारण में पाठान्तर होता है ,परन्तु सर्पशाप से ग्रसित जन्मपत्रिकाओं की निवृति भी "कालसर्पयोग "विधि से ही होती है ।।
-----भवदीय -पंडित के0 एल0 झा शास्त्री {मेरठ }
----ज्योतिष सेवा आजीवन सदस्यता शुल्क 500 रूपये अदा करने पर ही मिलेगी ?
ज्योतिष सेवा सदन --संपर्क सूत्र -09897701636,09358885616
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---प्रसंगवश "कालसर्पयोग "की भांति ही सर्पशाप से ग्रसित कुण्डलियों का विवेचन करना आवश्यक समझता हूँ ।वैसे तो -14 प्रकार से श्रापित कुण्डलियों की शान्ति "कालसर्पयोग "विधि से ही हो जाती है ।केवल संकल्प के समय उच्चारण में पाठान्तर होता है ,परन्तु सर्पशाप से ग्रसित जन्मपत्रिकाओं की निवृति भी "कालसर्पयोग "विधि से ही होती है ।।
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