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गुरुवार, 14 जून 2012

"पंचकों में क्या करें ? क्या नहीं करें?"

    "पंचकों में क्या करें ? क्या नहीं करें?"
--रत्नमाला ग्रन्थ के अनुसार -धनिष्ठा ,शतभिषा ,पूर्वाभाद्रपद,उत्तरा भाद्रपद और रेवती इन पञ्च नक्षत्रों को पंचक कहते हैं |
   "वसवोतर दलादी पंचके याम्य्दिग्गम्नेह गोपनम|
    प्रेतदाह त्रीण काष्ठ संग्रह  श्य्यादिकवि तननम च वर्जयेत ||
----भाव --पंचकों में दक्षिण दिशा की यात्रा ,वायुयान की सवारी करना,मकान की छत या लेंटर डालना ,झोपडी तैय्यार करना,मृतक का अग्निसंस्कार करना,तिनके तोडना ,काष्ठ्संग्रह करना,चारपाई {ख़त }बनवाना {बुनवाना },पलग कुर्सी बनवाना ,स्तम्भारोपन,त्रीण ताम्बा  ,पीतल  का संचय करना वर्जित कहा गया  है   |
---पंचकों में हानि - लाभ  अन्य कार्य पांचगुना,त्रिपुष्कर योग में तीन गुणा तथा द्विपुष्कर योग में दो गुणा फल मिलने की सम्भावना रहती है |
-----विधिवत अशुभ संयोग बन पड़े तो नक्षत्र पूजा ,दान पुण्यार्जन ,द्विजभोजन सम्मान करने पर कार्य  क्षेत्र       में  हानी होने का अंदेशा नहीं रहता है  शुभकार्यों  में तो हमेशा शुभ ही मिलते  हैं ।
------ध्यान रहे --- मुहुर्तग्रंथों में विवाह ,यज्ञोपवीत, मुंडन संस्कार ,गृहारंभ ,गृहप्रवेश ,वधुप्रवेश ,आदि देवपूजन ,व्रत ,उद्यापन तथा होली ,दीपावली ,रक्षाबंधन ,भैय्यादूज ,करवाचौथ अदि पर्वोत्सवों में पंचक निशेध के विषय में कहीं कुछ नहीं लिखा ,अपितु धनिष्टादी  पांचों नक्षत्रों को मंगलोत्सव में शुभ लिखा है ।
    { देखें ---वृहद्दैवग्यरंजनग्रन्थ  में }
-----भवदीय -पंडित कन्हैयालाल "झा  शास्त्री "

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