"यदि "शास्त्र" से काम चल जाय तो "शस्त्र" न उठायें "
"विद्या शस्त्रस्य शास्त्र्य ,द्वे विद्ये प्रति पतत्ये "-जीवन यापन करने [जीने के लिये ]-के लिये शस्त्र और शास्त्रों की आवश्यकता पड़ती है| कभी -कभी जब शास्त्र से काम नहीं चलता है तो लोग शस्त्र भी उठा लेते हैं ,कियोंकि -"व्रह्म सत्यम जगन मित्थ्या" भगवान् को छोरकर संसार की सभी वस्तु असत्य है यह जानते हुए भी हमलोग असत्य वस्तु के लिये लड़ते हैं | इसमें गलती हमलोगों की नही होती है ,यह माया का दोष होता है ,वही हमें भर्मित करती है ,ज्ञानी पुरुष तो बच जाते हैं ,किन्तु अज्ञानी उलझे ही रहते हैं | आइये इस विषय में पूर्व कथा का अबलोकन करते हैं =दर्शन शास्त्र के अनुसार -मिथिला नरेश -महाराज "जनक " को भला कौन नहीं जाता है -वो राजा थे ,शस्त्र और शास्त्रों में इतना निपुण थे ,कि "अष्टावक्र " जैसी विभूति उनसे शास्त्रों कीजानकारी हेतु उनके पास आये -जब "अष्टावक्र " मिथिला की राज्य सभा में उपस्थित हुए तो लोगों ने उनका बहुत ही उपहास किया ,किन्तु इन्होंने जबाब शस्त्रों से नहीं शास्त्रों से दिया ,की यदि हँसना ही है तो उस परमात्मा के ऊपर हंसो जिसने हमको बनाया है |उसी साम्राज्य में भगवान् " परुषराम" भी हुए जिन्होंने यह दिखाया कि जब शस्त्र से काम न चले तो शास्त्र उठाओ किन्तु वो सक्षम थे जीवन देने में भी और लेने में भी | उसी सामराज्य का राजा "महाराजा जनक ने कभी भी शस्त्र नहीं उठाये राजा होते हुए भी || भाव मित्रप्रवर -हमें सभी कलाओं की जानकारी तो जरुर होनी चाहिए परन्तु प्रयोग हम उन्हीं कलाओं का करें जिससे किसी का अहित न हो ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"मेरठ [उ प ]

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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
"यदि "शास्त्र" से काम चल जाय तो "शस्त्र" न उठायें "
प्रस्तुतकर्ता
ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
पर
शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010


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