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मंगलवार, 23 नवंबर 2010

"जिनका अपमान हो समझो ,सम्मान मिलने वाला है ?"

"जिनका अपमान हो समझो ,सम्मान मिलने वाला है ?"
कभी -कभी समकालीन जो बात या वस्तु होती है उसका हम उपहास करने में संकोच तनिक भी नहीं करते हैं ,परन्तु कुछ काल के उपरांत खुद ही अपना लेते हैं -"चार्वाक" नाम के अलोकिक कवि हुए | पूरा काल में लोग सम्मान ,सत्य पथ , से जीते थे यही सबसे बड़ी संम्पत्ति होती थी -उस समय महा कवि "चार्वाक " ने एक युक्ति दी -यावत जीवेत सुखं जीवेत  =जब तक जीवें सुख से जीवें ,ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत =चाहे ऋण ही क्यों न करना पड़े ,घी जरुर पीवें ,ततकाल उनका  बहुत उपहास हुआ और आप  संसार से विरक्त हो गए | समय बदला उनकी जो उक्ति थी -वो हम सब पर लागु हो गयी और  हम लोग -मान ,प्रतिष्ठा ,सम्मान ,इसी को समझने लगें -चाहे कुछ भी हो-कर्ज ,लेना पड़े ,झूठ बोलना पड़े ,अपने दिखाबा के लिये | भाव मित्र बंधुओं वर्तमान यदि उत्तम है तो भविष्य भी उत्तम बन जायेगा | जितना प्रभुने दिया है उसमें जीना सीखें ,परिश्रम करें ,संसार में जितनी भी वस्तुएं हैं वो जरुरी नहीं की हमरे लिये लाभदायक ही हैं |
-सुप्रभातम ,राम राम |     

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