
-आजीवन सदस्यता शुल्क -1100.rs,जिसकी आजीवन सम्पूर्ण जानकारी सेवा सदन के पास होगी ।। --सदस्यता शुल्क आजीवन {11.00- सौ रूपये केवल । --कन्हैयालाल शास्त्री मेरठ ।-खाता संख्या 20005973259-स्टेट बैंक {भारत }Lifetime membership fee is only five hundred {11.00}. - Kanhaiyalal Meerut Shastri. - Account Number 20005973259 - State Bank {India} Help line-09897701636 +09358885616
ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
निःशुल्क ज्योतिष सेवा ऑनलाइन रात्रि ८ से९ जीमेल पर [पर्तिदिन ]
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---जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा ...
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"तुला राशि में हों शनि ? कुछ बनते धनी,कुछ होते सही ,किन्तु कुछ रह जाते हैं वहीँ ?" -जितने भी ग्रह हैं ,उनमें शनि की ग...
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": HAVE A NICE DAY : " 'Entry of new persons may change your lifestyle and...
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"गुरु की सुदृष्टि ,शनि की कुदृष्टि ,क्या बचेंगें ?जीव और धरती !" "यदा सुर गुरुर्मेषे सुखं सर्वजनेषु च ,सुभिक्षम क्षेम...
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"Understand how beautifuly GOD keeps adding one more day at a time in ur life, Not because you need it but becoz some1else needs ...
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शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "धन से ही धर्म होता है" [सम्प्रति ]
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "धन से ही धर्म होता है" [सम्प्रति ]: " 'धन से ही धर्म होता है' [सम्प्रति ] आज के समय में ' धन ' के विना बहुत से कार्ज़ नहीं हो सकते हैं ,अतः हमें 'धन ' का प्रयत्न धा..."
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ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
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शनिवार, अक्टूबर 30, 2010
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"धन से ही धर्म होता है" [सम्प्रति ]
"धन से ही धर्म होता है" [सम्प्रति ]
आज के समय में " धन " के विना बहुत से कार्ज़ नहीं हो सकते हैं ,अतः हमें "धन " का प्रयत्न धार्मिक बिचार से भी करने चाहिए | दीपावली का उत्सव हो और यंत्र ,मन्त्र एवं तंत्रों की परिचर्चा न करें ,तो थोड़ी सुन्दरता काम हो जाएगी -आइये कुछ "शास्त्रों का मत भी जानने की कोशिश करते हैं -कार्तिक मास में भगवान -लक्ष्मी नारायण की उपासना जो भी कोई करता है -उसको "धन ,संतान ,संपत्ति अर्थात नाना प्रकार के सुख मिलते हैं ,और यह सुख जन्म जन्मान्तर तक चलता रहा है |-इस समय यदि -जो द्विज होते हैं ,उनको वैदिक मत का अनुशरण करना चाहिए ,और जो द्विज नहीं हैं -उनको पोराणिक मत का अनुशरण करना चाहिए |-इससे आप दोष मुक्त हो जायेंगें -तथा जिस -जिस कामना से अनुष्ठान करेंगें वो सभी कामनाएं पूरी होंगीं |-यदि आप सात्यिक पूजा करते हैं ,तो विचार भी सात्यिक रखें ? और यदि तामसिक पूजा करते हैं तो तामसिक प्रवृति रखनी पड़ेगी |- मेरे विचार से -सात्विक पूजा ही निरंतर सुख प्रदान करती है -यदि आप -१११ दीपों का श्रीसूक्त से दीपदान किसी द्विज से कराते हैं -३ दिन तो कभी भी व्यापर में हानी नहीं होगी | [२]-यदि आप जप में यकीन रखते हैं ,तो सवा लाख "माँ लक्ष्मी " के जप करने या कराने से -सभी कार्जों में उन्नति होगी | -यदि आप सक्षम नहीं हैं किसी भी अनुष्ठान को कराने में तो -इस मन्त्र के साथ 11दीपों का दान ४०दिन करने या केवल २१ दिन करने य३ दिन में करने से ही माँ लक्ष्मी की अनुकम्पा होती है -ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमलये कमलालये प्रसीद -प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्म्यै नमः || -यह मन्त्र सात्यिक प्रवृति के लोग ही अपनाएं | जो तामसिक हैं -वो -ॐ या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रुपें संस्थिता ,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || -यदि हम जल में १११ दोपों का दान इन्हीं मन्त्रों से जल में करते हैं तो और भी विशेष लाभ होता है.[व्यापर , नौकरी के लिये यह उपाय अति उत्तम होता है || इति श्री ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री [मेरठ ]
संपर्क सूत्र -०९८९७७०१६३६.०९३५८८८५६१६.
आज के समय में " धन " के विना बहुत से कार्ज़ नहीं हो सकते हैं ,अतः हमें "धन " का प्रयत्न धार्मिक बिचार से भी करने चाहिए | दीपावली का उत्सव हो और यंत्र ,मन्त्र एवं तंत्रों की परिचर्चा न करें ,तो थोड़ी सुन्दरता काम हो जाएगी -आइये कुछ "शास्त्रों का मत भी जानने की कोशिश करते हैं -कार्तिक मास में भगवान -लक्ष्मी नारायण की उपासना जो भी कोई करता है -उसको "धन ,संतान ,संपत्ति अर्थात नाना प्रकार के सुख मिलते हैं ,और यह सुख जन्म जन्मान्तर तक चलता रहा है |-इस समय यदि -जो द्विज होते हैं ,उनको वैदिक मत का अनुशरण करना चाहिए ,और जो द्विज नहीं हैं -उनको पोराणिक मत का अनुशरण करना चाहिए |-इससे आप दोष मुक्त हो जायेंगें -तथा जिस -जिस कामना से अनुष्ठान करेंगें वो सभी कामनाएं पूरी होंगीं |-यदि आप सात्यिक पूजा करते हैं ,तो विचार भी सात्यिक रखें ? और यदि तामसिक पूजा करते हैं तो तामसिक प्रवृति रखनी पड़ेगी |- मेरे विचार से -सात्विक पूजा ही निरंतर सुख प्रदान करती है -यदि आप -१११ दीपों का श्रीसूक्त से दीपदान किसी द्विज से कराते हैं -३ दिन तो कभी भी व्यापर में हानी नहीं होगी | [२]-यदि आप जप में यकीन रखते हैं ,तो सवा लाख "माँ लक्ष्मी " के जप करने या कराने से -सभी कार्जों में उन्नति होगी | -यदि आप सक्षम नहीं हैं किसी भी अनुष्ठान को कराने में तो -इस मन्त्र के साथ 11दीपों का दान ४०दिन करने या केवल २१ दिन करने य३ दिन में करने से ही माँ लक्ष्मी की अनुकम्पा होती है -ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमलये कमलालये प्रसीद -प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा लक्ष्म्यै नमः || -यह मन्त्र सात्यिक प्रवृति के लोग ही अपनाएं | जो तामसिक हैं -वो -ॐ या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मी रुपें संस्थिता ,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः || -यदि हम जल में १११ दोपों का दान इन्हीं मन्त्रों से जल में करते हैं तो और भी विशेष लाभ होता है.[व्यापर , नौकरी के लिये यह उपाय अति उत्तम होता है || इति श्री ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री [मेरठ ]
संपर्क सूत्र -०९८९७७०१६३६.०९३५८८८५६१६.
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शनिवार, अक्टूबर 30, 2010
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": चिट्ठाजगत संकलक का आधिकारिक चिट्ठा: [सूचना] पंजीकर...
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": चिट्ठाजगत संकलक का आधिकारिक चिट्ठा: [सूचना] पंजीकर...: "चिट्ठाजगत संकलक का आधिकारिक चिट्ठा: [सूचना] पंजीकरण विधि व अधिकृत करें प्रक्रिया Step by Step"
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "धन से अहित भी होता है"
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "धन से अहित भी होता है": " 'धन से अहित भी होता है' योवनम धन संपत्तिः, प्रभूतं अबैकिता | एकैकमपि नार्थय,किमु यत्र चतुष्टयं || मित्रप्रवर-धन के विना बहु..."
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"धन से अहित भी होता है"
"धन से अहित भी होता है"
योवनम धन संपत्तिः, प्रभूतं अबैकिता |
एकैकमपि नार्थय,किमु यत्र चतुष्टयं || मित्रप्रवर-धन के विना बहुत से कार्ज हम नहीं कर पाते हैं ,किन्तु यही धन हमारा अहित भी करता है -शास्त्रकारों का मत है -यदि युवावस्था में किसी यवक को विशेष धन ,संपत्ति ,प्रभुता और एकता की प्राप्ति हो जाय तो वो यवक विगड भी जाता है [अर्थात वो वही करता है ,जो उसको अच्छा लगता है ]-राम -राम |
-२- "NEVER CONCLUDE A PERSON WITH HIS PRESENT POSITION,B'COZ timeHAS THE POWER TO CHANGE A INVALUABLE COAL INTO A VALUABLE DIAMOND"GD MRNG"
योवनम धन संपत्तिः, प्रभूतं अबैकिता |
एकैकमपि नार्थय,किमु यत्र चतुष्टयं || मित्रप्रवर-धन के विना बहुत से कार्ज हम नहीं कर पाते हैं ,किन्तु यही धन हमारा अहित भी करता है -शास्त्रकारों का मत है -यदि युवावस्था में किसी यवक को विशेष धन ,संपत्ति ,प्रभुता और एकता की प्राप्ति हो जाय तो वो यवक विगड भी जाता है [अर्थात वो वही करता है ,जो उसको अच्छा लगता है ]-राम -राम |
-२- "NEVER CONCLUDE A PERSON WITH HIS PRESENT POSITION,B'COZ timeHAS THE POWER TO CHANGE A INVALUABLE COAL INTO A VALUABLE DIAMOND"GD MRNG"
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शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010
चिट्ठाजगत संकलक का आधिकारिक चिट्ठा: [सूचना] पंजीकरण विधि व अधिकृत करें प्रक्रिया Step by Step
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शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010
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चिट्ठाजगत संकलक का आधिकारिक चिट्ठा: मेरा चिट्ठा चिट्ठाजगत पर क्यों नहीं दिख रहा है?
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शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": अन्न का अपमान न करें ?
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": अन्न का अपमान न करें ?: " अन्न का अपमान न करें ? अन्नं व्रह्मा रसो विष्णु ,भोगता च जनार्दनः | एवं ज्ञात्वा महादेवो,अन्न दोषों न लिप्यते || मित्रप्रवर- अन्न क..."
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ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
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शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010
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अन्न का अपमान न करें ?
अन्न का अपमान न करें ?
अन्नं व्रह्मा रसो विष्णु ,भोगता च जनार्दनः |
एवं ज्ञात्वा महादेवो,अन्न दोषों न लिप्यते ||
मित्रप्रवर- अन्न के विना हम जी नहीं सकते हैं -तो हमें अन्न को प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए -अन्न =व्रह्मा हैं ,उसका जो रस है- वो विष्णु हैं -एवं जो ग्रहण करते हैं -वो जनार्दन हैं -यह भगवान का प्रसाद है यह समझकर जो भोजन करते हैं -उनको अन्न का दोष नहीं लगता है [हमारा ध्येय यह होना चाहिए ,कि कोई भी भूखा न रहे, इसलिए हम उतना ही अन्न ग्रहण करें,जितने से हमारा जीवन चल सकता हो ]-राम -राम -
[If everyone is happy with u..Then surely u have made compromises in your life,If u are happy with everyoun surely u ve ignored many faults of others..-Good Morning-]
अन्नं व्रह्मा रसो विष्णु ,भोगता च जनार्दनः |
एवं ज्ञात्वा महादेवो,अन्न दोषों न लिप्यते ||
मित्रप्रवर- अन्न के विना हम जी नहीं सकते हैं -तो हमें अन्न को प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए -अन्न =व्रह्मा हैं ,उसका जो रस है- वो विष्णु हैं -एवं जो ग्रहण करते हैं -वो जनार्दन हैं -यह भगवान का प्रसाद है यह समझकर जो भोजन करते हैं -उनको अन्न का दोष नहीं लगता है [हमारा ध्येय यह होना चाहिए ,कि कोई भी भूखा न रहे, इसलिए हम उतना ही अन्न ग्रहण करें,जितने से हमारा जीवन चल सकता हो ]-राम -राम -
[If everyone is happy with u..Then surely u have made compromises in your life,If u are happy with everyoun surely u ve ignored many faults of others..-Good Morning-]
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शुक्रवार, अक्टूबर 29, 2010
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गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है न किअ...
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है न किअ...: " 'एकशचन्द्रःतमोहन्ति न च ताराशतान्यपी' मित्रप्रवर ='एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है, न किअशंख्य ताराएँ 'भाव - ब..."
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गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010
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"एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है न किअशंख्य ताराएँ "
"एकशचन्द्रःतमोहन्ति न च ताराशतान्यपी"
मित्रप्रवर ="एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है, न किअशंख्य ताराएँ "भाव - बहुत पुत्रों से क्या होना है ,एक ही पुत्र हो ओउर कामयाब हो,हम सभी अच्छे बनें ,जिससे चाँद की तरह ,देदीप्यमान आभा से, सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करते रहें |-[राम -राम ]
=२=
This quote Has Inspired Me 2 work Hard & Realized Value of Time "EVERY DROP OF SWEAT AT YOUNG AGE WIL REDUCE OUR TEN DROPS OF TEARS IN OLD AGE...
मित्रप्रवर ="एक ही चाँद सम्पूर्ण संसार को प्रकाश देता है, न किअशंख्य ताराएँ "भाव - बहुत पुत्रों से क्या होना है ,एक ही पुत्र हो ओउर कामयाब हो,हम सभी अच्छे बनें ,जिससे चाँद की तरह ,देदीप्यमान आभा से, सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करते रहें |-[राम -राम ]
=२=
This quote Has Inspired Me 2 work Hard & Realized Value of Time "EVERY DROP OF SWEAT AT YOUNG AGE WIL REDUCE OUR TEN DROPS OF TEARS IN OLD AGE...
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गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010
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बुधवार, 27 अक्टूबर 2010
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "मंगली दोष,एवं मिथिला "
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "मंगली दोष,एवं मिथिला ": " 'मंगली दोष,एवं मिथिला ' मंगली दोष का नाम सुनते ही आप भयभीत क्यों हो जाते हैं ? संसार में हर वस्तु का निदान है,तो फिर आइये जानने ..."
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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"मंगली दोष,एवं मिथिला "
"मंगली दोष,एवं मिथिला "
मंगली दोष का नाम सुनते ही आप भयभीत क्यों हो जाते हैं ? संसार में हर वस्तु का निदान है,तो फिर आइये जानने की कोशिश करते हैं ,कि हम "मंगली दोष क्या है एवं किसे कहते हैं ,तथा इसका निदान क्या है.|- कुंडली के द्वादश भाव होतेहैं -१,४,७,८.१२ -इन स्थानों में यदि मंगल ग्रह विराजमान हो तो "मंगली" दोष होता है ,किन्तु इन्ही स्थानों में "शनि" विराजमान हो तो यह दोष स्वतः ही निष्फल हो जाता है , और भी बहुत से मत हैं जिनसे यह दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है -परन्तु यह बात जरुर है ,कि मंगला यदि बालक हो तो मंगली ही बालिका से विवाह होना चाहिए |-शाब्दिक शव्दों में यदि कहें तो -मंगली दोष का अर्थ है २ विवाह के योग होना -सनातन धर्म को मानने वाले -इस कारण से बिचलित हो जाते हैं |-यदि मंगली दोष है और [१]-या तो मंगला लड़का न मिले [२]-मंगली दोष है और लड़की न मिले मंगली| इस स्थिति में -शाश्त्रकारों ने -मंगली दोष का निदान कई प्रकार से बताये हैं -[१]-लड़का विवाह "कुम्भ" से कर दिया जाये |-[२]-लड़की का विवाह "शालिग्राम " से करा दिया जाये ,परन्तु यह विदित विवाह से पूर्व और गुप्त होने चाहिए |-परन्तु हमारा अपना अनुभव है ,कि मंगली दोष में २ विवाह अर्थात शारीरिक सम्बन्ध २ से जरुर होते होते हैं | - [जो यकीन नहीं करते वो अनुभव करके देख लें ,]हम जब मंगली दोष का निदान की बात कर ही रहे हैं, तो "मिथिला" की बात जरुर आएगी ,क्योकि सम्पूर्ण संसार के शास्त्र और "मिथिला " के व्यवहार यथाबत हैं | "मैथिलों " की परम्पराओं में चाहे कोई मंगली हो या न हो -बर- बधुओं का जब भी विवाह होता है ,तो निदान तत्काल [आम और महुआ के पेड़ से विवाह करा दिया जाता है ]-किया जाता है | भाव -जरुरत है अनुभव की, सही सोच की ,यह जो धरोहर हमारे पूर्वजों ने हमें दिए ,हम उसका अनुकरण करें ,उस पथ पर चलें ,और साथ ही सभी को सही समझें ,समझाएं |
भवदीय -निवेदक "झा शास्त्री "[मेरठ ]
मंगली दोष का नाम सुनते ही आप भयभीत क्यों हो जाते हैं ? संसार में हर वस्तु का निदान है,तो फिर आइये जानने की कोशिश करते हैं ,कि हम "मंगली दोष क्या है एवं किसे कहते हैं ,तथा इसका निदान क्या है.|- कुंडली के द्वादश भाव होतेहैं -१,४,७,८.१२ -इन स्थानों में यदि मंगल ग्रह विराजमान हो तो "मंगली" दोष होता है ,किन्तु इन्ही स्थानों में "शनि" विराजमान हो तो यह दोष स्वतः ही निष्फल हो जाता है , और भी बहुत से मत हैं जिनसे यह दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है -परन्तु यह बात जरुर है ,कि मंगला यदि बालक हो तो मंगली ही बालिका से विवाह होना चाहिए |-शाब्दिक शव्दों में यदि कहें तो -मंगली दोष का अर्थ है २ विवाह के योग होना -सनातन धर्म को मानने वाले -इस कारण से बिचलित हो जाते हैं |-यदि मंगली दोष है और [१]-या तो मंगला लड़का न मिले [२]-मंगली दोष है और लड़की न मिले मंगली| इस स्थिति में -शाश्त्रकारों ने -मंगली दोष का निदान कई प्रकार से बताये हैं -[१]-लड़का विवाह "कुम्भ" से कर दिया जाये |-[२]-लड़की का विवाह "शालिग्राम " से करा दिया जाये ,परन्तु यह विदित विवाह से पूर्व और गुप्त होने चाहिए |-परन्तु हमारा अपना अनुभव है ,कि मंगली दोष में २ विवाह अर्थात शारीरिक सम्बन्ध २ से जरुर होते होते हैं | - [जो यकीन नहीं करते वो अनुभव करके देख लें ,]हम जब मंगली दोष का निदान की बात कर ही रहे हैं, तो "मिथिला" की बात जरुर आएगी ,क्योकि सम्पूर्ण संसार के शास्त्र और "मिथिला " के व्यवहार यथाबत हैं | "मैथिलों " की परम्पराओं में चाहे कोई मंगली हो या न हो -बर- बधुओं का जब भी विवाह होता है ,तो निदान तत्काल [आम और महुआ के पेड़ से विवाह करा दिया जाता है ]-किया जाता है | भाव -जरुरत है अनुभव की, सही सोच की ,यह जो धरोहर हमारे पूर्वजों ने हमें दिए ,हम उसका अनुकरण करें ,उस पथ पर चलें ,और साथ ही सभी को सही समझें ,समझाएं |
भवदीय -निवेदक "झा शास्त्री "[मेरठ ]
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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jyotish seva sadan"jha shastri": ""अनुभव और निदान , ज्योतिष एवं कर्मकांड "
jyotish seva sadan"jha shastri": ""अनुभव और निदान , ज्योतिष एवं कर्मकांड ": " ' अनुभव और निदान,ज्योतिष एवं कर्मकांड ' ज्योतिष किसी विशेष व्यक्ति के लिए नहीं बनायीं गयी है | ज्योतिष विद्या का..."
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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ज्योतिष सेवा सदन निवेदक ="झा शास्त्री
किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ [उ0प0]
संपर्कसूत्र-९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.
किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ [उ0प0]
संपर्कसूत्र-९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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jyotish seva sadan"jha shastri": jyotish seva sadan "jha shastri"
jyotish seva sadan"jha shastri": jyotish seva sadan "jha shastri": "'ज्योतिष सेवा सदन ' निरंतर आपकी सेवा में तत्पर रहता हैं | रात्रि ८ से ९ ऑनलाइन जीमेल पर [दोस्ती से ]-निःशुल्क एवं निःसंकोच | [१]-आप हमारी सह..."
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": " जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हित...
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": " जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हित...: " ' जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम 'हितोपदेश' होता है ' कभी -कभी हम बहुत ही उदास हो जाते हैं ,और हमें कोई रास्ता नजर नही..."
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "हमें चिंता नहीं चिंतन करने चाहिए "
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "हमें चिंता नहीं चिंतन करने चाहिए ": " 'हमें चिंता नहीं चिंतन करने चाहिए ' विधाता हमारे भाग्य की रचना, गर्भ में ही निर्धारित करते हैं -आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या ..."
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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"हमें चिंता नहीं चिंतन करने चाहिए "
"हमें चिंता नहीं चिंतन करने चाहिए "
विधाता हमारे भाग्य की रचना, गर्भ में ही निर्धारित करते हैं -आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या ,निर्धनता | हम चिंतन के द्वारा कुछ परिवर्तन कर सकते हैं,परन्तु बदल नहीं सकतेहैं | अतः हमें चिंतन [मनन ] करने चाहिए न की चिंतित होने चाहिए | -"राम -राम"
=[2]-Very short but much truthful lines by charlie chaplin"Mirror is my best friend,Because when I cry it never laughs!"-Good Morning-
विधाता हमारे भाग्य की रचना, गर्भ में ही निर्धारित करते हैं -आयु ,कर्म ,वित्त ,विद्या ,निर्धनता | हम चिंतन के द्वारा कुछ परिवर्तन कर सकते हैं,परन्तु बदल नहीं सकतेहैं | अतः हमें चिंतन [मनन ] करने चाहिए न की चिंतित होने चाहिए | -"राम -राम"
=[2]-Very short but much truthful lines by charlie chaplin"Mirror is my best friend,Because when I cry it never laughs!"-Good Morning-
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बुधवार, अक्टूबर 27, 2010
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मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
" जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हितोपदेश" होता है "
" जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हितोपदेश" होता है "
कभी -कभी हम बहुत ही उदास हो जाते हैं ,और हमें कोई रास्ता नजर नहीं आता है ,तो हम क्या करें -"अनुकरण " जी हाँ संसार में जितने भी जीव हैं उसमें "मानव को ही विवेक होता है और उस विवेक के मार्ग पर चलकर ही हम उपदेश देते हैं | "संस्कृत साहित्य " में कई इस पर्कार के ग्रन्थ हैं जिनका अनुकरण करके हम अपनी मानवता की पहचान बनाते हैं | पंडित विष्णुदत्त शर्मा नाम के कोई विद्वान हुए ,और शिक्षित तो थे ही साथ ही शिक्षा भी प्रदान करते थे,संयोग से एक "राजा" उनकी पाठशाला के नजदीक से गुजर रहे थे ,तो उन्होंने -पाठशाला में जो बालकों को "आचार्य जी " पढ़ा रहे थे वो श्लोकों को सुने -" अर्था गमो नित्य मरोगिता च प्रिय च भार्या पिर्वदिनी च | भाव -जिनके जीवन में ये वस्तुएं मिल जाती हैं वो सबसे धनी होता है - वो क्या है -जिनको धन रोज प्राप्त होते हैं | जिनका आरोग्य नित्यप्रति सुन्दर रहता है | जिनकी पत्नी देखने में अति सुन्दर हो ,एवं प्रिय बोलने वाली हो | जिनका पुत्र उत्तम हो .साथ ही कुलको ताड़ने वाले हों ? -"राजा "ने दूसरा शलोक यह सुना = आहार निद्रा भय मैथुनांच, सामान्य मेतत पशुभि सामना - भाव -आहार हम भी लेते हैं -पाश भी लेते हैं | निद्रा भी यथाबत है | भय -डर भी एक समान होता है | मैथुन भी यथाबत | ये सारी प्रक्रियाएं समानवत होते हैं -तो फिर अंतर क्या है -मनुष्य को यह पत्ता है कि यह मेरी माँ है ,वहिन है, भाभी है, अर्थात ज्ञान होता है विवेक होता है ,परन्तु -पशुओं में यह विवेक का आभाव होता है | यह श्लोकों को सुनने के वाद-"राजा ने निश्चय किया कि हम भी अपने सभी ७ पुत्रों को शिक्षित करेंगें -अन्यथा ये हमारे पुत्र पशुओं कि भांति रहेंगें [संयोग से सभी प्रेम वश अनपढ़ थे ] -"राजा "ने पंडित जी से निवेदन किया कि आप हमारे पुत्रों को शिक्षित करें-अन्यथा ये हमारे ही शत्रु हो जायेंगें ,और यदि ये अनपढ़ रहे तो राज्य नष्ट हो जायेगा | "राजा "का आदेश भला कोन ताल सकता है तो उन्होंने निश्चय किया कि हम इन बालकों को शिक्षित करेंगें ,परन्तु यह भी डर था कि ये सभी अनपढ़ हैं इनको पढ़ना तो बहुत ही कठिन है -इन बालको को पढ़ने के लिये -एक ग्रन्थ कि रचना कि नाम था "हितोपदेश " छोटी -छोटी बातो से इनलो शिक्सित कीये -राजा प्रसन्न हुए -भाव -हर समस्या का समाधान हो सकता है ,जरुरी है अपने विवेक का उपयोग करने कि अनुठा हम मनुष्य ,पढ़े लिखे होने के वाद भी सही कोशिश नहीं करते हैं ,जिस कारण से हम दुखी भी होते है |
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
कभी -कभी हम बहुत ही उदास हो जाते हैं ,और हमें कोई रास्ता नजर नहीं आता है ,तो हम क्या करें -"अनुकरण " जी हाँ संसार में जितने भी जीव हैं उसमें "मानव को ही विवेक होता है और उस विवेक के मार्ग पर चलकर ही हम उपदेश देते हैं | "संस्कृत साहित्य " में कई इस पर्कार के ग्रन्थ हैं जिनका अनुकरण करके हम अपनी मानवता की पहचान बनाते हैं | पंडित विष्णुदत्त शर्मा नाम के कोई विद्वान हुए ,और शिक्षित तो थे ही साथ ही शिक्षा भी प्रदान करते थे,संयोग से एक "राजा" उनकी पाठशाला के नजदीक से गुजर रहे थे ,तो उन्होंने -पाठशाला में जो बालकों को "आचार्य जी " पढ़ा रहे थे वो श्लोकों को सुने -" अर्था गमो नित्य मरोगिता च प्रिय च भार्या पिर्वदिनी च | भाव -जिनके जीवन में ये वस्तुएं मिल जाती हैं वो सबसे धनी होता है - वो क्या है -जिनको धन रोज प्राप्त होते हैं | जिनका आरोग्य नित्यप्रति सुन्दर रहता है | जिनकी पत्नी देखने में अति सुन्दर हो ,एवं प्रिय बोलने वाली हो | जिनका पुत्र उत्तम हो .साथ ही कुलको ताड़ने वाले हों ? -"राजा "ने दूसरा शलोक यह सुना = आहार निद्रा भय मैथुनांच, सामान्य मेतत पशुभि सामना - भाव -आहार हम भी लेते हैं -पाश भी लेते हैं | निद्रा भी यथाबत है | भय -डर भी एक समान होता है | मैथुन भी यथाबत | ये सारी प्रक्रियाएं समानवत होते हैं -तो फिर अंतर क्या है -मनुष्य को यह पत्ता है कि यह मेरी माँ है ,वहिन है, भाभी है, अर्थात ज्ञान होता है विवेक होता है ,परन्तु -पशुओं में यह विवेक का आभाव होता है | यह श्लोकों को सुनने के वाद-"राजा ने निश्चय किया कि हम भी अपने सभी ७ पुत्रों को शिक्षित करेंगें -अन्यथा ये हमारे पुत्र पशुओं कि भांति रहेंगें [संयोग से सभी प्रेम वश अनपढ़ थे ] -"राजा "ने पंडित जी से निवेदन किया कि आप हमारे पुत्रों को शिक्षित करें-अन्यथा ये हमारे ही शत्रु हो जायेंगें ,और यदि ये अनपढ़ रहे तो राज्य नष्ट हो जायेगा | "राजा "का आदेश भला कोन ताल सकता है तो उन्होंने निश्चय किया कि हम इन बालकों को शिक्षित करेंगें ,परन्तु यह भी डर था कि ये सभी अनपढ़ हैं इनको पढ़ना तो बहुत ही कठिन है -इन बालको को पढ़ने के लिये -एक ग्रन्थ कि रचना कि नाम था "हितोपदेश " छोटी -छोटी बातो से इनलो शिक्सित कीये -राजा प्रसन्न हुए -भाव -हर समस्या का समाधान हो सकता है ,जरुरी है अपने विवेक का उपयोग करने कि अनुठा हम मनुष्य ,पढ़े लिखे होने के वाद भी सही कोशिश नहीं करते हैं ,जिस कारण से हम दुखी भी होते है |
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
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ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
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मंगलवार, अक्टूबर 26, 2010
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"कर्मकांड की पाठशाला "
"कर्मकांड की पाठशाला "
अनभ्यासे विषम विद्या -अभ्यास नहीं करने पर विद्या विष के सामान हो जाती है |अजिरने भोजनं विषम -अत्यधिक भोजन करने पर भोजन भी जहर के सामान हो जाता है | विषम सभा दरिद्र्सय -जानते हैं ,विद्वानों की सभा में कोई अनपढ़ हो तो ?दुश्कलो मानिनो विषम -और जब मन खिन्न रहने लगे तो वो भी विष के सामान हो जाता है.|
अनभ्यासे विषम विद्या -अभ्यास नहीं करने पर विद्या विष के सामान हो जाती है |अजिरने भोजनं विषम -अत्यधिक भोजन करने पर भोजन भी जहर के सामान हो जाता है | विषम सभा दरिद्र्सय -जानते हैं ,विद्वानों की सभा में कोई अनपढ़ हो तो ?दुश्कलो मानिनो विषम -और जब मन खिन्न रहने लगे तो वो भी विष के सामान हो जाता है.|
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सोमवार, 25 अक्टूबर 2010
Good Morning
If the ist button of a shirt is wrongly put,allthe rest are surely crooked.So always be careful onur ist step.rest'll come correct automaticaly-GM. "किम सत्यम "=सत्य क्या है |
जीव जबसे माँ के गर्भ में आते हैं ,तो साकार "हरि " से होते हैं ,और जब तक जीते हैं ,तब भी "हरि "की कृपा पर ही जीते हैं ,जब चलने का समय आता है -तब भी " हरि "ही साथ होते हैं ,परन्तु जब से जीव भूमंडल पर आते हैं -माता पिता ,भाई बंधुओं ,परिजनों से सम्बन्ध बनते हैं -या तो ये हमें छोर देते हैं ,या हम? इसलिए "हरि "ही सत्य है और संसार झूठा है |
जीव जबसे माँ के गर्भ में आते हैं ,तो साकार "हरि " से होते हैं ,और जब तक जीते हैं ,तब भी "हरि "की कृपा पर ही जीते हैं ,जब चलने का समय आता है -तब भी " हरि "ही साथ होते हैं ,परन्तु जब से जीव भूमंडल पर आते हैं -माता पिता ,भाई बंधुओं ,परिजनों से सम्बन्ध बनते हैं -या तो ये हमें छोर देते हैं ,या हम? इसलिए "हरि "ही सत्य है और संसार झूठा है |
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"किम सत्यम "=सत्य क्या है |
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जीव जबसे माँ के गर्भ में आते हैं ,तो साकार "हरि " से होते हैं ,और जब तक जीते हैं ,तब भी "हरि "की कृपा पर ही जीते हैं ,जब चलने का समय आता है -तब भी " हरि "ही साथ होते हैं ,परन्तु जब से जीव भूमंडल पर आते हैं -माता पिता ,भाई बंधुओं ,परिजनों से सम्बन्ध बनते हैं -या तो ये हमें छोर देते हैं ,या हम? इसलिए "हरि "ही सत्य है और संसार झूठा है |
जीव जबसे माँ के गर्भ में आते हैं ,तो साकार "हरि " से होते हैं ,और जब तक जीते हैं ,तब भी "हरि "की कृपा पर ही जीते हैं ,जब चलने का समय आता है -तब भी " हरि "ही साथ होते हैं ,परन्तु जब से जीव भूमंडल पर आते हैं -माता पिता ,भाई बंधुओं ,परिजनों से सम्बन्ध बनते हैं -या तो ये हमें छोर देते हैं ,या हम? इसलिए "हरि "ही सत्य है और संसार झूठा है |
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रविवार, 24 अक्टूबर 2010
"कर्मकांड का पथ,और" हमारा सच " =काव्य शास्त्र विनोदेन-जो अच्छे विचार के लोग होते हैं ,उनका समय किसी -काव्य शास्त्र और विनोद में व्यतीत होता है |कालो गच्छति धीमताम-प्रायः उनका समय भी बहुत धीमी गति से व्यतीत होता है | व्यसनेन च मुर्खानं -और जो लोग व्यसन इत्यादि में अपना समय व्यतीत करते हैं,निद्रया कल्हेन्वा-उनका समय निद्रा और कलह में बीत जाता है ,और पत्ता ही नहीं चलता है | Charlie Chaplin said "Life laughs at you when you are unhappy,Life smiles at you when you are happy,But Life salutes you when make others happy"
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रविवार, अक्टूबर 24, 2010
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"कर्मकांड का पथ,और" हमारा सच "
"कर्मकांड का पथ,और" हमारा सच "
=काव्य शास्त्र विनोदेन-जो अच्छे विचार के लोग होते हैं ,उनका समय किसी -काव्य शास्त्र और विनोद में व्यतीत होता है |कालो गच्छति धीमताम-प्रायः उनका समय भी बहुत धीमी गति से व्यतीत होता है | व्यसनेन च मुर्खानं -और जो लोग व्यसन इत्यादि में अपना समय व्यतीत करते हैं,निद्रया कल्हेन्वा-उनका समय निद्रा और कलह में बीत जाता है ,और पत्ता ही नहीं चलता है |
Charlie Chaplin said "Life laughs at you when you are unhappy,Life smiles at you when you are happy,But Life salutes you when make others happy"
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"कर्मकांड का पथ,और" हमारा सच "
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=काव्य शास्त्र विनोदेन-जो अच्छे विचार के लोग होते हैं ,उनका समय किसी -काव्य शास्त्र और विनोद में व्यतीत होता है |कालो गच्छति धीमताम-प्रायः उनका समय भी बहुत धीमी गति से व्यतीत होता है | व्यसनेन च मुर्खानं -और जो लोग व्यसन इत्यादि में अपना समय व्यतीत करते हैं,निद्रया कल्हेन्वा-उनका समय निद्रा और कलह में बीत जाता है ,और पत्ता ही नहीं चलता है |
=काव्य शास्त्र विनोदेन-जो अच्छे विचार के लोग होते हैं ,उनका समय किसी -काव्य शास्त्र और विनोद में व्यतीत होता है |कालो गच्छति धीमताम-प्रायः उनका समय भी बहुत धीमी गति से व्यतीत होता है | व्यसनेन च मुर्खानं -और जो लोग व्यसन इत्यादि में अपना समय व्यतीत करते हैं,निद्रया कल्हेन्वा-उनका समय निद्रा और कलह में बीत जाता है ,और पत्ता ही नहीं चलता है |
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