" जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हितोपदेश" होता है "
कभी -कभी हम बहुत ही उदास हो जाते हैं ,और हमें कोई रास्ता नजर नहीं आता है ,तो हम क्या करें -"अनुकरण " जी हाँ संसार में जितने भी जीव हैं उसमें "मानव को ही विवेक होता है और उस विवेक के मार्ग पर चलकर ही हम उपदेश देते हैं | "संस्कृत साहित्य " में कई इस पर्कार के ग्रन्थ हैं जिनका अनुकरण करके हम अपनी मानवता की पहचान बनाते हैं | पंडित विष्णुदत्त शर्मा नाम के कोई विद्वान हुए ,और शिक्षित तो थे ही साथ ही शिक्षा भी प्रदान करते थे,संयोग से एक "राजा" उनकी पाठशाला के नजदीक से गुजर रहे थे ,तो उन्होंने -पाठशाला में जो बालकों को "आचार्य जी " पढ़ा रहे थे वो श्लोकों को सुने -" अर्था गमो नित्य मरोगिता च प्रिय च भार्या पिर्वदिनी च | भाव -जिनके जीवन में ये वस्तुएं मिल जाती हैं वो सबसे धनी होता है - वो क्या है -जिनको धन रोज प्राप्त होते हैं | जिनका आरोग्य नित्यप्रति सुन्दर रहता है | जिनकी पत्नी देखने में अति सुन्दर हो ,एवं प्रिय बोलने वाली हो | जिनका पुत्र उत्तम हो .साथ ही कुलको ताड़ने वाले हों ? -"राजा "ने दूसरा शलोक यह सुना = आहार निद्रा भय मैथुनांच, सामान्य मेतत पशुभि सामना - भाव -आहार हम भी लेते हैं -पाश भी लेते हैं | निद्रा भी यथाबत है | भय -डर भी एक समान होता है | मैथुन भी यथाबत | ये सारी प्रक्रियाएं समानवत होते हैं -तो फिर अंतर क्या है -मनुष्य को यह पत्ता है कि यह मेरी माँ है ,वहिन है, भाभी है, अर्थात ज्ञान होता है विवेक होता है ,परन्तु -पशुओं में यह विवेक का आभाव होता है | यह श्लोकों को सुनने के वाद-"राजा ने निश्चय किया कि हम भी अपने सभी ७ पुत्रों को शिक्षित करेंगें -अन्यथा ये हमारे पुत्र पशुओं कि भांति रहेंगें [संयोग से सभी प्रेम वश अनपढ़ थे ] -"राजा "ने पंडित जी से निवेदन किया कि आप हमारे पुत्रों को शिक्षित करें-अन्यथा ये हमारे ही शत्रु हो जायेंगें ,और यदि ये अनपढ़ रहे तो राज्य नष्ट हो जायेगा | "राजा "का आदेश भला कोन ताल सकता है तो उन्होंने निश्चय किया कि हम इन बालकों को शिक्षित करेंगें ,परन्तु यह भी डर था कि ये सभी अनपढ़ हैं इनको पढ़ना तो बहुत ही कठिन है -इन बालको को पढ़ने के लिये -एक ग्रन्थ कि रचना कि नाम था "हितोपदेश " छोटी -छोटी बातो से इनलो शिक्सित कीये -राजा प्रसन्न हुए -भाव -हर समस्या का समाधान हो सकता है ,जरुरी है अपने विवेक का उपयोग करने कि अनुठा हम मनुष्य ,पढ़े लिखे होने के वाद भी सही कोशिश नहीं करते हैं ,जिस कारण से हम दुखी भी होते है |
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
-आजीवन सदस्यता शुल्क -1100.rs,जिसकी आजीवन सम्पूर्ण जानकारी सेवा सदन के पास होगी ।। --सदस्यता शुल्क आजीवन {11.00- सौ रूपये केवल । --कन्हैयालाल शास्त्री मेरठ ।-खाता संख्या 20005973259-स्टेट बैंक {भारत }Lifetime membership fee is only five hundred {11.00}. - Kanhaiyalal Meerut Shastri. - Account Number 20005973259 - State Bank {India} Help line-09897701636 +09358885616
ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
निःशुल्क ज्योतिष सेवा ऑनलाइन रात्रि ८ से९ जीमेल पर [पर्तिदिन ]
-
---जिस दिशा में 'शुक्र "सम्मुख एवं जिस दिशा में दक्षिण हो ,उन दिशाओं में बालक ,गर्भवती स्त्री तथा नूतन विवाहिता स्त्री को यात्रा ...
-
" प्रतिदिन यमघंट काल का समय?" --रविवार -सायं 12.00 से 1.30बजे तक । --सोमवार -प्रातः काल -10.30 से 12.00बजे तक । -- मंगलवा...
-
"7-Tips to be happy in life-" {1}-Never b late, [2]-Don't cheat, [3]-Live simple, [4]...
-
"Mr. era -2013 +2014 = 2070, ie, the idea of the solar system?" ----- April 13, 2013 Chaitra Shukla Tritiya 1 Bjkr 29 minutes ...
-
Heart is not a basket for keeping tension n sadness.. Its a golden box for keeping roses of happiness... Let ur heart b happy alwaz... smi...
-
"True thought-" the most stupid mistak in our life is thinking&Trusting that d one who hurt u d mos...
-
jyotish seva sadan: "मंगली दोष युक्त विवाह उत्तम नहीं होता है !"
-
King Martin Luther's Words:- "two bulls always fight in every person's minnd, Good & bed..Do U know w...
-
jyotish seva sdan Nivedak "jha shastri": "यदि "शास्त्र" से काम चल जाय तो "शस्त्र" न उठायें ... : "...
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
" जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हितोपदेश" होता है "
प्रस्तुतकर्ता
ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
पर
मंगलवार, अक्टूबर 26, 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)

1 टिप्पणी:
" जिन उपदेशों से सभी का कल्याण हो ?उसी का नाम "हितोपदेश" होता है "
कभी -कभी हम बहुत ही उदास हो जाते हैं ,और हमें कोई रास्ता नजर नहीं आता है ,तो हम क्या करें -"अनुकरण " जी हाँ संसार में जितने भी जीव हैं उसमें "मानव को ही विवेक होता है और उस विवेक के मार्ग पर चलकर ही हम उपदेश देते हैं | "संस्कृत साहित्य " में कई इस पर्कार के ग्रन्थ हैं जिनका अनुकरण करके हम अपनी मानवता की पहचान बनाते हैं | पंडित विष्णुदत्त शर्मा नाम के कोई विद्वान हुए ,और शिक्षित तो थे ही साथ ही शिक्षा भी प्रदान करते थे,संयोग से एक "राजा" उनकी पाठशाला के नजदीक से गुजर रहे थे ,तो उन्होंने -पाठशाला में जो बालकों को "आचार्य जी " पढ़ा रहे थे वो श्लोकों को सुने -" अर्था गमो नित्य मरोगिता च प्रिय च भार्या पिर्वदिनी च | भाव -जिनके जीवन में ये वस्तुएं मिल जाती हैं वो सबसे धनी होता है - वो क्या है -जिनको धन रोज प्राप्त होते हैं | जिनका आरोग्य नित्यप्रति सुन्दर रहता है | जिनकी पत्नी देखने में अति सुन्दर हो ,एवं प्रिय बोलने वाली हो | जिनका पुत्र उत्तम हो .साथ ही कुलको ताड़ने वाले हों ? -"राजा "ने दूसरा शलोक यह सुना = आहार निद्रा भय मैथुनांच, सामान्य मेतत पशुभि सामना - भाव -आहार हम भी लेते हैं -पाश भी लेते हैं | निद्रा भी यथाबत है | भय -डर भी एक समान होता है | मैथुन भी यथाबत | ये सारी प्रक्रियाएं समानवत होते हैं -तो फिर अंतर क्या है -मनुष्य को यह पत्ता है कि यह मेरी माँ है ,वहिन है, भाभी है, अर्थात ज्ञान होता है विवेक होता है ,परन्तु -पशुओं में यह विवेक का आभाव होता है | यह श्लोकों को सुनने के वाद-"राजा ने निश्चय किया कि हम भी अपने सभी ७ पुत्रों को शिक्षित करेंगें -अन्यथा ये हमारे पुत्र पशुओं कि भांति रहेंगें [संयोग से सभी प्रेम वश अनपढ़ थे ] -"राजा "ने पंडित जी से निवेदन किया कि आप हमारे पुत्रों को शिक्षित करें-अन्यथा ये हमारे ही शत्रु हो जायेंगें ,और यदि ये अनपढ़ रहे तो राज्य नष्ट हो जायेगा | "राजा "का आदेश भला कोन ताल सकता है तो उन्होंने निश्चय किया कि हम इन बालकों को शिक्षित करेंगें ,परन्तु यह भी डर था कि ये सभी अनपढ़ हैं इनको पढ़ना तो बहुत ही कठिन है -इन बालको को पढ़ने के लिये -एक ग्रन्थ कि रचना कि नाम था "हितोपदेश " छोटी -छोटी बातो से इनलो शिक्सित कीये -राजा प्रसन्न हुए -भाव -हर समस्या का समाधान हो सकता है ,जरुरी है अपने विवेक का उपयोग करने कि अनुठा हम मनुष्य ,पढ़े लिखे होने के वाद भी सही कोशिश नहीं करते हैं ,जिस कारण से हम दुखी भी होते है |
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
एक टिप्पणी भेजें