"आपके कृत्य कर्म का प्रतिफल है ? कुंडली का नवम भाव "
मित्रप्रवर , "ज्योतिष " अपने जीवन का दर्पण है ,आप माने या न मानें -जिस प्रकार से सात स्वर से अनंत राग बन जाते हैं ,ठीक उसी तरह से "कुंडली " के १२ भाव से ही जीव की समस्त गणना की जा सकती है | हमलोग कुछ ही परिश्रम से समस्त जानकारी कर लेते हैं ,किन्तु वास्तविकता तो यह है ,कि"ज्योतिष "एक सागर है ,कुछ जल निकाल लेने से सागर की महिमा को नहीं नापा जा सकता है | -कुछ प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं ,और साथ ही उम्मीद भी करते हैं कि आपलोग उस पथ पर चलेंगें भी ?
-जब जातक माँ के गर्भ में आता है -अभिभावक -उसके भाग्य की सराहना करना शुरू कर देते हैं ,आपने पूर्व जन्म में जो भी सुन्दर कर्म कीये होंगें ,तो तत्काल आपको उसी क्रमानुसार फल मिलते जायेंगें ,एवं यदि आपने विपरीत कर्म कीये होंगें तो फल भी उसी क्रमानुसार मिलेंगें | यदि यही बात देखनी हो तो कुंडली के दशम भाव को कर्मक्षेत्र कहा जाता है ,और नवम भाव को भाग्य तो कर्म से पहले भाय की गणना होती है -इसका मतलब है कि जो आप कर रहे हैं वो वाद में मिलेगा ,और जो आपने पहले किया है -वो तत्काल मिल रहा है ,तो फिर हम आप चिंतित क्यों होते हैं -जो मिल रहा है उसे भगवान् का या अपने कृत्य कर्म का प्रसाद समझकर स्वीकार प्रसन्नता से क्यों नहीं करते हैं |-मान लो आपने अपने माता पिता की सेवा बहुत की थी तो आपकी संतान आपकी सेवा जरुर करेगी ,किन्तु हम लोग तत्काल सेवा का फल देखते हैं ,जो गलत है | -जिसने अपने पत्ती या पतनी से छल किया ho ,तो वही जातक मंगली या मंगला होते हैं ,और इस जन्म में पुनः यही योग लेकर आते हैं -यदि "हरि "की क्रिपा से इस जन्म पति या पतनी का धर्मं निभाते हैं तो दोष मुक्त हो जायेंगें ,अन्यथा पुनः संसार में आयेंगें और जायेंगें किन्तु इस दोष से मुक्त नहीं हो पायेंगें [और परिचर्चा हम कल करेंगें ]
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"मेरठ |.

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शनिवार, 27 नवंबर 2010
"आपके कृत्य कर्म का प्रतिफल है ? कुंडली का नवम भाव "
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