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बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

भगवान "मनु " और "हम "

                                   भगवान "मनु " और "हम "
किसी भी  बात को सत्य तब मान लेनी चाहिए ,जब हम पढ़ें एवं अनुभव करें | प्राचीन ग्रंथों में बहुत सी बातें विवादस्पद लगती है ,किन्तु जब हम ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं ,तत्पश्चात जब हम उस बात का आकलन करते हैं तो हमें भिन्नता सी बात लगती है | आइये अबलोकन करते हैं वेदांत ,और "मनुश्मृति" का - यह बात तो आप भी मान सकते हैं कि किसी भी घर को चलाने के लिये मालिक पद तो एक को ही मिलेगा |  सदस्य जितने होंगें ,उसी अनुपात नौकर भी होंगें .कर्मचारी भी होंगें | सवाल यह है ,की  जितनी जिम्मेदारी एक नौकर की होती है, उतनी ही कर्मचारियों की भी होती है , यदि सभी सदस्य अपने -अपने कार्ज़ को सही करेंगें तो स्वर्ग हो जायेगा

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