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रविवार, 28 नवंबर 2010

"अपने भाग्य की सराहना आप स्वयं करें?"

  "अपने भाग्य की सराहना आप स्वयं करें?"
विधाता की विशेषता यह है ,कि निर्माण भी करते हैं ,एवं नष्ट भी स्वयं करते हैं ,जो इस बात को जानते हैं वो इस पथ को छोरकर -श्री कृष्णः शरणम् मम " के पथपर चल देते हैं ,बहुत जानते हुए भी ,इस पथ  पर नहीं चल पाते हैं | >मित्र प्रवर -हम कुंडली के नवम भाव की जितनी भी विवेचना करें ,वो आपके भाग्य की सराहना के लिये काम होगा ,फिर भी एक प्रयास करने की कोशिश करते हैं | कुंडली के प्रथम ,पंचम एवं नवम भाव [स्थान ]को त्रिकोण कहते हैं यह सदा उत्तम फल ही ग्रहों के अनुसार प्रदान करते हैं |
यदि -मेष ,सिंह ,वृश्चिक राशी हो या सूर्य और मंगल नवम भाव में हों तो -शाशक,राजनेता ,संपत्ति ,वाहन और साथ ही जातक  दादागिरी  और प्रधान पद की आशक्ति रखने वाला होता है ,तथा इस सभी चीजों से युक्त भी होता है |-वृष ,तुला ,राशी हो साथ ही शुक्र और बुद्ध विराजमान हों तो जातक -संगीत प्रिय .लेखन क्षेत्र ,कूट नितिग्य ,स्वच्छ और धनवान होता है जातक |
-मकर कुम्भ यदि राशी हों साथ ही शनि विराजमान हों तो जातं का भाग्य विलम्ब से अवस्य बनता है ,लोह निर्मित ,संपत्ति युक्त ,भाग्यवान  किन्तु आलस्य से युक्त भी होता है |
धनु या मीन राशी हों गुरु विराजमान हों तो  तो जातक का भाग्य तो निम्न होता है ,किन्तु -स्वभाव का बहुत ही मजबूत ,संपत्ति से युक्त ,मान सम्मान से लिप्त ,तथा लोक प्रिय होता है |
जिनके भाग्य में राहू या केतु होते हैं वो ,विदेश यात्रा तो करते ही हैं ,समस्त वस्तुएं अनायास ही मिल जाती हैं |
भाव -यही घर एक कुंडली में सबसे उत्तम मना गाया है ,आपको लाभ  किस प्रकार से होगा ,किस क्षेत्र में काम करना चाहिए जिससे लाभ होगा , जब भी आप उदास हों तो जानकारी नवम भाव की करें ,तथा अपने सुन्दर कर्मों के द्वारा वर्तमान ,भूत.और भविष्य को सही करें |
भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री मेरठ [उ प ]   

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